

अभी तक मराठी गौरव और महाराष्ट्र अस्मिता का दंभ भरने वाले स्वघोषित महाराष्ट्र के रक्षक कहाँ गायब हो गए, कुछ पता ही नही चला। अब जब आतंकियों ने महाराष्ट्र पर हमला किया तो क्या ये हाथों में चूडियाँ पहन और घूंघट निकल कर घरों में दुबक गए। गरीबों और कमजोरों को खुलेआम पीटना तो इनकी बहादुरी थी, तो अब इनकी बहादुरी कहाँ चली गई?
मैं नही कहता कि जाकर आतंकियों से भिड जाओ लेकिन कम से कम अपनी फौज को घायल और असहाय लोगों कि मदद के लिए लगा सकते थे। मानवता के लिए न सही महाराष्ट्र के लिए करते। तब मैं भी समझता कि हाँ आप कुछ करना चाहते है महाराष्ट्र के लिए।
आप के कुकृत्यों से सारे देश और आतंकियों में यह संदेश गया कि आप जैसा टुटपुंजिया नेता अगर पूरे देश और सारे महाराष्ट्र को नचा सकता है और सत्ता और प्रशासन आपकी रखैल बन सकती है तो वो मात्र ८-१० कि संख्या में पूरे राष्ट्र को घुटनों पर बैठने को विवश कर सकते हैं। और उन्होंने यह किया भी, लेकिन भला हो देश के उन जाबांज सपूतों का जिन्होंने इसे असफल कर दिया।
आपने थोडी सी नाक काटी तो उन्होंने बुलंद हौसलों के साथ पूरी नाक काटने कि कोशिश की। इन दोनों घटनाओं में एक साम्यता यह है कि दोनों में हमारे नपुंसक राजनीतिज्ञ अपनी घटिया हरकतों का प्रदर्शन करते रहे मात्र वोट बैंक के लिए।
अगर जरा सी भी जलालत और इज्जत बची हो तो फ़िर कभी भी मराठी गौरव का रक्षक बनने की कोशिश न कीजियेगा। यह मेरी आपको एक भारतीय होने के नाते एक सलाह है।
2 टिप्पणियां:
बहुत अच्छी सलाह है.
बहुत अच्छा लिखा है. ये बात बिल्कुल सही है की तब इनके वो जवान या पार्टी सहयोगी कहा थे? वे कम से कम घायलों की मदद तो कर ही सकते थे.
अच्छा प्रश्न खड़ा किया है.
sahi hai bhai .............
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