शुक्रवार, 9 जनवरी 2009

एचआईवी पीड़ित और एड्स पीड़ित में अन्तर


मित्रों, एक बार फ़िर से आप लोगों के सामने एक नई कविता लेकर हाजिर हूँ. इस नव वर्ष कि यह प्रथम रचना है. आशा है कि आप लोगों को यह पसंद आएगी.



जी हाँ, मैं एचआईवी पोजिटिव हूँ,

मात्र एचआईवी पोजिटिव,

एड्स पीड़ित नही।

लेकिन आप लोग एड्सग्रसित दिखते हैं

सोंचिये ऐसा क्यों है ?

चक्कर में पड़ गए न

कि बिना एचआईवी के एड्स रोगी?

जी हाँ, यह कटु सत्य है

मैं समाज में पहले की भांति ही जीना चाहता हूँ,

मैं चाहता हूँ की लोग मेरे प्रति सहानुभूति न रखें,

मेरे साथ अछूत जैसा व्यवहार न करें।

लेकिन

यह एड्सग्रस्त समाज है

जिसमे तथाकथित,

जी हाँ तथाकथित

बुद्धिजीवी, समाजसेवी और उत्कृष्ठ लोग रहते हैं,

जो मेरे जीने की इच्छा को
दबाकर ख़त्म कर देना चाहते हैं,

मुझे मरना चाहते हैं।

अब आप ही बताएं

कि एड्स पीड़ित कौन है?

जानलेवा बीमारी से ग्रसित कौन है?

क्या वो नही

जो एचआईवी पीड़ित की जान लेना चाहते हैं।

बेहतर होगा कि

आप मेरी अपेक्षा

इन तथाकथितों की चिंता करें

और

इनके इलाज कि व्यवस्था करें

अगर

इस एड्स ग्रसित समाज को
इस जानलेवा बीमारी से मुक्ति मिल गई

तो एचआईवी पीडितों को

मात्र एचआईवी से लड़ना पड़ेगा,

समाज से नही।

और

वे बेहतर ढंग से जीवन जी सकेंगे,

जी हाँ,

जीवन को जी सकेंगे।


चित्र साभार : गूगल

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

guru di jay
ho magar
apko kab hua pata hi nahin

Unknown ने कहा…

bahoot khoob


bicharon ki aandhiyan chalate raho
soye huon ko jagate raho