सोमवार, 1 दिसंबर 2008
''आमची मुंबई'' और ''मराठी मानुष'' के नारों वाले महाराष्ट्र के ठेकेदार कहाँ छिप गए?????
शनिवार, 29 नवंबर 2008
क्या हमारी हालत पाकिस्तान से भी बदतर है ???
जी हाँ , उपर्युक्त शीर्षक पर विचार करें तो जबाब मिलता है- हाँ ।
पाकिस्तान में रोज बम धमाके हो रहे हैं, प्रतिदिन आतंकी गोलियों की बौछार करते हुए किसी को भी मौत के घाट उतार देते हैं, आतंकी पूरे पाकिस्तान में जहाँ चाहें वहां आसानी से हमला कर सकते है और किसी को भी बेरोकटोक निशाना बना लेते हैं। हम उनका मजाक उड़ते हैं, उनके परमाणु प्रतिष्ठानों और परमाणु हथियारों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं।
अब जरा गौर करें कि क्या ऐसे ही हालात भारत में नही निर्मित हो गए हैं?
लश्कर-ऐ- तैयबा के जैसी कार्यप्रणाली पर काम करने ये वाले आतंकी ख़ुद को इंडियन मुजाहिद्दीन या डेक्कन मुजाहिद्दीन के छद्म नाम से प्रचारित करते है और हमले के पहले सूचना देते हैं कि हम आमुक स्थान पर हमला करने जा रहे हैं यदि दम है तो रोक लो?
हमले के बाद हमारी सुस्त कार्य प्रणाली हरकत में आती है और किश्तों में जांच शुरू कि जाती है। जांच ही काफ़ी दिनों तक घसीट-घसीट कर चलती है और निष्कर्ष नही आ पाता है। यदि किसी ठोस नतीजे पर पहुँच भी जाएँ तो उसे सजा नही दिला पाते। इस पूरी कार्यवाही के दौरान मानवाधिकार वाले खूब हल्ला मचाते हैं और विभिन्न राजनैतिक दल राष्ट्रहित को तिलांजलि देकर अपना वोट बैंक और स्वहित देखते हैं।
लश्कर-ऐ- तैयबा द्वारा प्रशिक्षित सिमी के ये कार्यकर्ता छोटे-छोटे गुटों में बंटकर नकली नाम से अपने मिशन को अंजाम देते हैं। और जरूरत पड़ने पर ये गुट साझा होकर भी अंजाम देते हैं। घटना के बाद हमारे राष्ट्र को चलने वाले बयान देते हैं कि- हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं, सीमा पार प्रायोजित है, आतंकियों को बख्शा नही जाएगा, हम छोडेंगे नही आदि। अरे भाई! पहले पकडो तो सही। अगर मालूम है कि सीमा पार प्रायोजित है तो उचित कार्यवाही क्यों नही करते? वैश्विक दबाव काहे नही बनवाते? खाली ''थोथा चना बाजे घना'' वाली कहावत चरित्रार्थ हो रही है।
उत्तर-प्रदेश, जयपुर, बेंगलूर, अहमदाबाद, दिल्ली, असम और फ़िर मुंबई। क्रमशः इन जगहों को ये अपना निशाना बनाते हैं और हम हर बार दावा करते हैं कि हमारी सुरक्षा व्यस्था टाइट है। इसी दावे के तुंरत बाद हम फ़िर से निशाना बनते है। मतलब साफ़ है कि वो जब, जहाँ, जैसा चाहते हैं वैसा कर डालते हैं और हम देखते रह जाते हैं।
इसको देखते हुए क्या हमारे परमाणु प्रतिष्ठानों कि सुरक्षा पर प्रश्नचिह्न नही खड़ा होता है? क्या हमारी हालत पकिस्तान से भी ज्यादा ख़राब नही है? धनबल में, सांख्यबल में, रुतबे में, हर दृष्टि में पकिस्तान से बेहतर हैं, हम पर किसी भी राष्ट्र का कोई दबाव भी नही है फ़िर भी हमारी हालत उन्ही के बराबर है तो इसका क्या मतलब निकला जाय?
हमारे यहाँ आतंकवाद सम्बन्धी कड़े कानूनों का अभाव है? संघीय जांच एजेंसी नही है। केन्द्र और राज्य सरकारों में तालमेल का आभाव है। ऐसे मौकों पर राजनैतिक लाभ और वोट बैंक की राजनीति हमेशा अडी रहती है। इस पर खुफिया असफलता, मीडिया की नकारात्मक भूमिका, हर एक पल को सनसनीखेज बनाकर पेश करना और जनता की निष्क्रियता ''कोढ़ में खाज'' जैसी हो गई है।
अन्य राष्ट्रों में चुनावी मुद्दे विदेश नीति, नागरिक सुरक्षा, विकास आदि रहते हैं तो हमारे यहाँ जाति, वंश, बाहुबल आदि रहते हैं। जनता इसके विरोध में उठ खड़ी भी नही होती। वो तो सोंचती है मैं मजे में हूँ बाकि जाए भाड़ में, मुझे क्या लेना है या फ़िर इस चौपाई के सहारे जी रही है की- '' होएहै वही जो राम रचि राखा ''।
अभी भी वक्त रहते सचेत न हुए तो निश्चय ही पकिस्तान से पहले हम बर्बाद हो जायेंगे।
चित्र साभार: गूगल
श्रधांजलि और नमन
शनिवार, 22 नवंबर 2008
शनिवार, 13 सितंबर 2008
जय सिंगूर
जय सिंगूर,जय-जय सिंगूर
टाटा के खट्टे अंगूर
ममता बनी उत्पाती लंगूर
जय सिंगूर,जय-जय सिंगूर....
इनकी खींचातानी से
बुद्धू के गाल हुए
जैसे लाल चटक सिन्दूर
जय सिंगूर,जय-जय सिंगूर....
सपा,भाकपा,ममता,मेधा
के गठजोड़ ने किया मजबूर
टाटा के नैनो का सपना
सिंगूर से हो गया अति दूर
जय सिंगूर,जय-जय सिंगूर....
नैनो के बहार जाने से
लाखों रोजगार बंगाल से फुर्र
करोड़ों के अड़तीस सेज भी
बंगाल छोड़ने को मजबूर
जय सिंगूर,जय-जय सिंगूर....
अचुतानंद,बिशनोई,राणे को
भी भूमि अधिग्रहण नही मंजूर
डीएलएफ,सत्यम,इन्फोसिस भी
बंगाल छोडेंगे हुजूर
जय सिंगूर,जय-जय सिंगूर....
एट्टीननाइंटीफोर क़ानून ने
विकास पथ में बिखराए शूल
आर एंड आर की नीति नही
तो कैसे खिलेंगे विकास के फूल
जय सिंगूर,जय-जय सिंगूर....
बाद में बंगाली भी सोंचेंगे
ममता ने की भरी भूल
जय सिंगूर,जय-जय सिंगूर....
चित्र :- साभार गूगल
गुरुवार, 4 सितंबर 2008
गोरखा भारी, सरकार हारी......
हांलाकि अलग राज्य की मांग की लडाई १९८० में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट ( जीएनएलएफ ) ने शुरू की थी। बाद में वह स्वायत्ता के लिए तैयार हो गई थी। जब इसने दार्जलिंग को भारतीय संविधान की ६वीं अनुसूची के अंतर्गत लाना चाहा तो जीएनएलएफ और विमल गुरांग के बीच दरार पड़ गई और विमल ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा बना लिया। साथ ही दार्जलिंग क्षेत्र को अलग राज्य बनने के लिए फ़िर नए सिरे से अभियान छेड़ दिया।
२८ जुलाई को जीजेएम ने दार्जलिंग क्षेत्र में स्वराज की घोषणा की. जिसके अंतर्गत सभी अधिकारियों को बंगाल सरकार के बजाय उनके नेताओं से आदेश लेने का फरमान जारी किया। साथ ही गुरांग ने कहा कि अब स्थानीय स्तर के सभी मामले मोर्चा देखेगी और बंगाल सरकार का कोई दखल नही होगा। यह अलग राज्य कि दिशा में पहला कदम है। इसी प्रकार बंगाल सरकार अप्रभावी होगी।
कुछ दिनों पूर्व फायरिंग में मोर्चा समर्थक एक महिला मारी गई थी और आरोप था कि घिसिंग की जीएनएलएफ के एक नेता ने करवाया था। इसके बाद जीएनएलएफ के खिलाफ हिंसा शुरू हो गई। दार्जलिंग गोरखा हिल कौंसिल के अध्यक्ष सुभाष घिसिंग के घर पर हमला हुआ और कौंसिल के ४ पार्षदों के घर जला दिए गए। पहाडियों के बेताज बादशाह घिसिंग को पहाड़ छोड़कर भागना पड़ा और उत्तरी बंगाल के सिलीगुडी में शरण लेनी पड़ी। इसके बाद जीएनएलएफ और सत्तारूढ़ कमुनिस्ट पार्टी के बहुत से नेताओं को जाने का आदेश दे दिया।
इसके बावजूद भी मोर्चा का दावा है की आन्दोलन लोकतांत्रिक है। गुरांग ८ सितम्बर की दिल्ली की त्रिपक्षीय बैठक का इंतजार भी कर रहे हैं और पहाडी क्षेत्रों में अपनी हुकूमत भी चला रहे हैं।
वाहनों के नंबर प्लेट में डब्ल्यू बी ( वेस्ट बंगाल ) की जगह जी एल ( गोरखालैंड ) करने की अन्तिम समय सीमा सरकारी वाहनों के लिए ७ अगस्त और निजी के लिए २५ अगस्त मोर्चा ने तय किया था। मोर्चा समर्थकों के उपद्रव से डरकर सरकारी अधिकारी सरकारी वाहनों को छोड़कर निजी टैक्सियों से यात्रा कर रहे हैं। मोर्चा नेताओं ने पहले से ही अपनी गाड़ियों पर जी एल ( गोरखालैंड ) लिखा रखा था। अब निजी टैक्सियों के भी नंबर भी बदले जा रहे हैं। पहाडी क्षेत्रों में डब्ल्यू बी ( वेस्ट बंगाल ) लिखी गाड़ियों से जुरमाना वसूला जा रहा रहा है और नंबर प्लेटों पर कालिख पोता जा रहा है। ३० रुपये पंजीकरण शुल्क में नंबर भी बदले जा रहे हैं। नंबर बदलवाने को लेकर मोर्चा चेतावनी देता है की आगे पहाडियों में दिक्कत आ सकती है। २६ अगस्त को १०० से अधिक गाड़ियों के नंबर प्लेटों पर कालिख पोती गई।
मोर्चा अध्यक्ष गुरांग कहते हैं कि नंबर प्लेट बदलने का लोग समर्थन कर रहे हैं और कालिख में मोर्चा का हाथ नही है, क्योंकि ऐसा आदेश नही दिया गया। जबकि प्रचार सचिव विनय तामांग का कहना है कि यह जिम्मा परिवहन समिति को सौंपा गया था। शायद उसके लोगों ने ऐसा किया हो।
गुरांग का दावा है कि यह निर्देश अलग राज्य के प्रति लगाव और इलाके में एकरूपता पैदा करने के लिए दिए गए हैं। वे इसे असंवैधानिक नही मानते और तर्क देते हैं कि अगर यह असंवैधानिक होता तो क्या सरकार चुपचाप बैठी रहती?
अभी ताजा फरमान के मुताबिक अगले पर्यटन सीजन में पारंपरिक गोरखा ड्रेस पहननी है।
गुरुवार, 28 अगस्त 2008
आरक्षण बढायेंगे, देश को मिटायेंगे.....
इस टकराव की शुरुवात तब हुई जब आईआईटी निदेशकों को केन्द्र सरकार ने एक निर्देश जारी किया और कहा कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछडा वर्ग के शिक्षकों कि भर्ती में ४९।५% आरक्षण सुनिश्चित किया जाय। वहीं साथ ही साथ आईआईटी- जेईई परीक्षा में शामिल होने के लिए तय मानक १२वीं की परीक्षा में ६०% अंक को घटाकर ५०% करने का निर्देश दिया है।
जबकि ज्वाइंट एडमिशन बोर्ड मौजूदा ६०% को बढाकर ८५% करने का विचार कर रहा है। २४ अगस्त को खड़कपुर में हुई बैठक में इस पर चर्चा हुई।
आईआईटी गुवाहाटी केन्द्र के निदेशक गौतम बर्मन ने जोरदार तर्कों के साथ इसका विरोध किया है। उन्होंने १९७२ में केन्द्र सरकार द्वारा जारी आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि अन्तरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और रक्षा संस्थानों में आरक्षण का कोई प्रावधान नही है। लिहाजा राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को भी इसमे शामिल करना चाहिए।
बर्मन जी कि बात पूरी तरह जायज है कि आप वोट की राजनीति करो, सबसे पहले अपना हित देखो लेकिन कम से कम राष्ट्रीय महत्त्व और राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों को अनदेखा तो न करो. क्योंकि यह चीजें राष्ट्र का अहित करती हैं और आने वाली पीढियों के रास्ते को बाधित ही नही करेंगी बल्कि पूरी तरह से उनके विकास के रास्तों को बंद कर देंगी. पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने आरक्षण की फसल काटकर देख लिया लेकिन उन्हें हासिल क्या हुआ? आज वे कहाँ हैं? इतिहास में वे किसलिए याद किए जायेंगे? इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने मात्र से ही पता चल जाएगा कि आरक्षण से हित हो रहा है या अहित।
यह वही नेता हैं जो चाहते हैं कि सभी जगह आरक्षण हो जाए। चाहे वो एम्स हो या फ़िर आईआईटी या आईआईएम जैसे उच्च संसथान। इनका बस चले तो सेना को भी पूरी तरह आरक्षित कर दें। चूँकि अपना कुछ जा नही रहा है तो दूसरे कि जेब से देने में क्या जाता है? सारे नेता यही सोंच रखते हैं। जब यह बीमार पड़ते है तो अपना इलाज भारत में करना भी मुनासिब नही समझते हैं। और इसके लिए इन्हे फुर्र से विदेश उड़ जाना ज्यादा अच्छा लगता है। ऐसे हैं दोहरे चरित्र वाले नेता जो अपने देश की बागडोर अपने हाथ में लिए है। अब आप ख़ुद सोंचिये कि इन परिस्तिथियों में ये अपने देश को रसातल में पहुँचा कर ही दम लेंगे। इनका एकमात्र ध्येय आरक्षण बढाकर देश को मिटाना है। ऐसे नेताओं का नारा है कि- आरक्षण बढायेंगे, देश को मिटायेंगे।
धर्मान्तरण का खतरनाक खेल
उडीसा में स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या के बाद २३ अगस्त से ही हिंसा शुरू हो गई थी। विहिप द्वारा २५ अगस्त को बंद के आह्वान के बाद ईसाइयों के खिलाफ जम कर हिंसा हुई और कई गिरजाघरों को आग भी लगा दी गई। २३ को ही कंधमाल और गजपति जिलों में ११ लोग मारे जा चुके हैं। प्रशासन ने स्तिथि को देखते हुए कर्फ्यू लगा दिया था। इसके बावजूद हिंसा थमने का नाम नही ले रही है। अतः दंगाइयों को देखते ही गोली मरने के आदेश दे दिए गए हैं।
स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती विहिप के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में महत्वपूर्ण सदस्य थे। कई वर्षों से धर्मान्तरण रोकने की मुहिम में जुटे थे। उनके इन कार्यों को लेकर कई संगठन नाराज थे। इससे पूर्व भी इन पर कई हमले कराये गए थे लेकिन स्वामी जी हर बार बच गए। इस बार भाग्य ने साथ नही दिया और काल के ग्रास बन गए।
स्तिथि इतनी न बिगड़ती अगर इस हत्या पर राजनीति न होती। राजनीति के चलते ही हत्या का दोष माओवादियों पर मढा जाने लगा। जिससे हिंसा को बढावा मिला। अगर उचित ढंग से जांच करायी जाती और जल्द से जल्द अपराधियों को पकड़ने का प्रयास किया जाता तो शायद स्थिति इतनी न बिगड़ती।
१९७१ की जनगणना में उडीसा में मात्र ६% ही इसाई थे और २००१ की जनगणना में ये बढकर २७% हो गए। यहाँ की तीन-चौथाई जनसंख्या आज भी गरीबी रेखा से नीचे है। इसी का फायदा उठा कर कई मिशनरियां धर्मान्तरण के कार्यों में जोर शोर से संलग्न हैं। इसकी गवाही यह जनगणना के आंकड़े देते हैं। उडीसा में आज से ४१ वर्ष पूर्व १९६७ में धार्मिक स्वतंत्रता क़ानून बनाया गया था। जो अभी लागू नही है। जबकि यहाँ पिछले १० वर्षों से नवीन पटनायक के नेतृत्व बीजू जनता दल और भाजपा की सरकार है। उडीसा विधानसभा की १४७ सीटों में से ६३ सीटों के साथ बीजू जनता दल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में शासन में है और ३३ सीटों के साथ भाजपा सहयोगी है। साथ में ८ निर्दलीय सरकार को समर्थन दे रहे हैं।
भाजपा का एक प्रतिनधिमंडल मुख्यमंत्री से मिला है और अपनी मांग में हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने, धार्मिक स्वतंत्रता क़ानून लागू करने और गौहत्या क़ानून दृढ़ता से लागू करने की मांग की है। वहीँ उडीसा उच्च न्यायलय ने राज्य सरकार से हिंसा के बाद प्रभावित क्षेत्र की स्तिथि पर रिपोर्ट कल तक दायर करने को कहा है।
यहाँ पर ईसाई संगठनों और हिन्दू संगठनों के बीच धर्मांतरणों को लेकर विवाद और हिंसा कोई नई बात नही है। पिछले वर्ष २५ दिसम्बर को विहिप द्वारा बंद के दौरान कई चर्चों में तोड़-फोड़ की गई थी। जिसके परिणामस्वरुप २७ दिसम्बर को ब्राम्हणीगाँव पर हथियारबंद ईसाइयों ने हमला किया था। जिसमे एक व्यक्ति मारा गया था और ७० घर जला दिए गए थे।
इन स्तिथियों को देखते हुए यही कहा जा सकता है की सरकार ने अतीत से कोई सबक नही लिया जिसके कारण आज यह विकट हालत पैदा हुए हैं। अभी भी समय है कि सरकार समय रहते चेत जाए और विवाद कि प्रमुख जड़ गरीबी और धर्मान्तरण का उचित समाधान ढूंढ कर उसे कडाई से लागू करे।
चित्र साभार:- दा हिन्दू और गूगल
कश्मीर का श्राइन बोर्ड और महाराष्ट्र का साइन बोर्ड
मंगलवार, 26 अगस्त 2008
चाय की ठेले पर- कश्मीर समस्या का हल
शुक्रवार, 22 अगस्त 2008
एक और प्रहार......
इसी के ऊपर पत्रिका ने लिखा कि- भास्कर ने दी फ़िर झूंठी ख़बर। अभी भी नागौरी जेल में है। जेल प्रशासन ने नागौरी के जेल में ही होने की पुष्टि की।
यह ख़बर पत्रिका ने प्रथम पृष्ट पर छपी थी। इसके पहले भी भास्कर के रिनी बाघिन के मरने की ख़बर पर पत्रिका ने तीखा प्रहार किया था। २७,२८ और २९ मई २००८ के अंकों में आप देख सकते हैं। इससे जुड़ी ख़बर आप इसी ब्लॉग पर मई वाले खंड में देख सकते हैं। यह इनकी प्रतिद्वंदिता का ही परिणाम है जो कि राजस्थान से शुरू हुआ था और अब मध्य प्रदेश में पहुँच चुका है। देखिये अभी आगे-आगे होता है क्या????????
गुरुवार, 21 अगस्त 2008
लुमडिंग से बदरपुर तक रेल सेवा बंद करने की मांग......
नार्थ-ईस्ट फ्रांटियर रेलवे ने अवैध बंगलादेशी नागरिकों, उल्फा आतंकियों और अन्य देशद्रोहियों से सुरक्षा न मुहैया करा सकने की वजह से लुमडिंग से बदरपुर तक रेल सेवा बंद करने की बात कही है। जबकि चीन ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा तक रेलवे लाइन बिछा दी है। यह है महाशक्ति बन रहे देश की सुरक्षा की असलियत।
केंद्रीय गृह-मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है कि सिमी पर से प्रतिबन्ध न हटाया जाय। क्योंकि पूरे देश में उस पर ४०९ मुक़दमे दर्ज हैं और उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत मौजूद हैं। यह वही सिमी है जो लश्कर-ऐ-तैय्यबा,जैश-ऐ-मोहम्मद,हूजी और इंडियन-मुजाहिद्दीन के लिए आउट-सोर्सिंग कर रहा है। संभावना तो यह भी व्यक्त कि जा रही है कि प्रतिबंधित होने पर सिमी ही इंडियन-मुजाहिद्दीन के छद्म नाम से आतंकी कार्यवाहियों को अंजाम दे रहा है।
जबकि हमारे रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान और मुलायम सिंह यादव जैसे कथित समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष नेता सिमी जैसे घातक,आतंकी और राष्ट्रद्रोही संगठन को क्लीन चिट दे रहे हैं और उनका समर्थन कर रहे हैं।
जब रेल मंत्री ही आतंकियों के पक्ष में बोलता नजर आ रहा है तो वह अपने विभाग को सुरक्षा कहाँ से दिला पायेगा?ऐसा विहंगम दृश्य कहाँ देखने को मिलेगा कि सरकार के अधीन गृह-मंत्रालय जहाँ आतंकी संगठन पर प्रतिबन्ध की मांग करता है, वहीँ उसी सरकार में सम्मिलित कुछ मंत्री उस संगठन को क्लीन चिट दे रहे हैं। यही तो है असली लोकतंत्र का नमूना। क्या इसी के दम पर हम चीन को पिछाड़कर महाशक्ति बनेगे?
फीलगुड की तरह ही इस बार भी देशवासियों को महाशक्ति का झुनझुना पकड़ा दिया गया है। जिसमे हम आत्ममुग्ध हैं। इस डर से हम सरकार पर उंगली नही उठाएंगे और उसके अच्छे-बुरे कार्यों का आँख मूँद कर अनुमोदन करेंगे कि कहीं यह झुनझुना हमारे हाथ से निकलकर चीन के हाथ में न चला जाए।वास्तविकता के धरातल पर देखें तो स्वयं पता लग जाता है कि इस दौड़ में चीन हमसे काफी आगे है। हम तो इस दौड़ में थे ही नही। क्या ये नेता राष्ट्र कि अस्मिता और सुरक्षा को दांव पर लगा कर रोटी खाना चाहते हैं? क्या इन्हे रोकना और सबक सिखाना हमारी जिम्मेदारी नही बनती है? जब सरकार अपने मंत्रियों पर अंकुश नही लगा सकती तो जनता को ही इसके लिए आगे आना होगा।
बुधवार, 20 अगस्त 2008
श्राइन बोर्ड तो बहाना है, कहीं और निशाना है.
५० दिन से जलता जम्मू और कश्मीर.........
रोटी सेंकते अलगाववादी और विदेशी ताकतें.........
जूठन के लालच में खड़े राजनैतिक दल और नेता.........
इनके बीच पिसते राज्य के आम नागरिक..........
मूक दर्शक बनी देश की जनता........
यह भयावह तस्वीर है उस देश की जो इस मिथ्याभिमान में झूम रहा है की वह महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
बंद के ५० दिन पूरे होने पर नेताओं के तेवर ढीले पड़ गए हैं लेकिन वहां की जनता में अभी भी जोश बरक़रार है। २ लाख महिलाओं की गिरफ्तारी पर उन्हें एक १५ साल की किशोरी संबोधित करते हुए कह रही थी कि हम अपना हक़ और जमीन दोनों वापस ले कर रहेंगे। गिरफ्तारी देने गई सभी महिलाएं अपना नाम पार्वती,पति का नाम शिवशंकर और निवासी बालटाल बता रही थीं।
जहाँ अलगाववादियों और पाकिस्तान का उद्देश्य कश्मीर को तोड़कर पाक में विलय करना है वहीँ जम्मू लगातार अपनी उपेक्षा और भेदभाव से परेशान होकर इसी बहाने आर-पार कि लडाई लड़ने के मूड में दिख रहा है। मुस्लिमों को जमीन देने पर कोई ऐतराज नही था क्योंकि यह जमीन बंजर थी और साल में ८ महीने यहाँ बर्फ जमी रहती है अतः इसका कोई ख़ास उपयोग नही था परन्तु कट्टरवादी नेताओं ने गुमराह कर भड़काया कि धीरे-धीरे हिंदूवादी ताकतें कब्जा करना चाहती हैं जिससे वे घबरा गए और बहककर उनके साथ हो गए।
अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी खुलेआम जम्मू और कश्मीर के पाकिस्तान में विलय की मांग कर रहे हैं,वहीँ पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती भी मुजफ्फराबाद मार्च में उनके समर्थन में आ खड़ी हुई। आन्दोलन की कमान नेताओं के हाथ से निकलकर जनता व अलगाववादिओं के हाथ में आ गई है।
कई पंथनिरपेक्ष पार्टियाँ तो इन्ही अलगाववादिओं के सुर में ही राग अलापना चाहती हैं और इसकी कोशिश भी करती दिख रही हैं। अरुंधती राय ने आजाद-कश्मीर की वकालत भी कर डाली लेकिन इसके विरोध में किसी ने भी बोलने की जहमत नही उठाई।
सुरक्षा एजेंसियां चिल्ला-चिल्ला कर कह रही हैं कि आन्दोलन में कई उग्रवादी शामिल हैं परन्तु सरकार इस पर ध्यान न देकर नरम रवैया अपनाए हुए है जिससे सुरक्षा बल कार्यवाही नही कर पा रहे हैं।अलगाववादियों द्वारा इसे संयुक्त राष्ट्र में ले जाने कि मांग कि जा रही है. दुबारा इसका अंतर्राष्ट्रीयकरण होते देखकर सरकार के हाथ-पैर फूल चुके हैं और वह किंकर्तव्यविमूढ है. क्या विश्वासमत में मिले पीडीपी के एक वोट के एहसान तले संप्रग सरकार इतनी दब गई है कि उचित कार्यवाही तो दूर वह फटकार भी नही सकती है? सरकार के साथ सभी पार्टियाँ और नेता पूरी तरह भ्रमित नजर आ रहे हैं. यही है महाशक्ति बनने का सपना?
घाटी में कट्टरपंथियों ने ४ दिन बवाल मचाया तो फ़ौरन जमीन वापस ले ली जबकि जम्मू में ५० दिन से चल रहे आन्दोलन से सरकार कि नीद नही खुल रही है. १५ अगस्त को घाटी में काला दिवस मनाया गया. तिरंगे को जलाया गया,पाकिस्तानी झंडे को लहरा के नारे लगाये गए कि भारत तेरी मौत आए,मिल्लत आए. सारा दिन मस्जिदों से लाउडस्पीकरों में चिल्लाये कि हमको आजादी चाहिए। श्रीनगर के लाल चौक पर ध्वजारोहण के बाद तिरंगा उतारकर पाकिस्तानी झंडा फहराया. क्या यह हमारी देश कि संप्रभुता का अपमान नही है? क्या यह राष्ट्रद्रोह नही है? मुजफ्फराबाद मार्च में भी व्यापर मार्ग खोलने कि बू आती है. क्या इजराइल,अमेरिका,चीन या रूस ऐसी स्तिथि में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते या फ़िर ऐसे लोगों को नेस्तोनाबूत कर देते? न कोई मीडिया होता,न कोई मानवाधिकार होता और अगर कोई दूसरा देश बोलता तो उसे भी फाड़ खाते. देश चलाने वालों जरा सीखो इनसे......
.जय हिंद.
मंगलवार, 12 अगस्त 2008
अभिनव बिंद्रा ने तोडी ओलम्पिक की निद्रा..........
भारत ने अब तक ८ स्वर्ण पदक जीते थे वह भी हाकी में। परन्तु इस बार हाकी में क्वालीफाई न कर पाने के कारण भारतीयों की रूचि ओलंपिक से ख़त्म हो गई थी। लेकिन अभिनव के निशाने ने आगे की उम्मीदें जगा दी हैं। १९८० के बाद मिले इस स्वर्ण ने बाकियों को भी प्रोत्साहित किया है कि वे भी अपना सर्वस्व झोंक दें।
इस प्रदर्शन पर अभिनव पर करोड़ों कि बरसात हुई है। क्या अभिनव इसमे से कुछ हिस्सा निशानेबाजी या अन्य खेलों के विकास के लिए देंगे? हालाँकि उन्होंने अपनी तैयारी पर १० करोड़ खर्च किए हैं। वे सक्षम थे अतः ऐसा कर पाए। क्या स्वर्ण कि राह दिखने के बाद उस पर दौड़ने में भी मदद करेंगे?
वहीँ बिंद्रा पर करोड़ों कि बरसात करने वाले राज्य और सरकारों ने क्या यह तय कर रखा है कि जीतने पर ही पैसे लुटाएंगे, जीतने कि तैयारी करने पर नहीं? क्रिकेट को छोड़कर अन्य खिलाड़ी संसाधनों और कोच का रोना रोते हैं, क्या उस दिशा में भी सरकारें समुचित कदम उठाएंगी?
यदि इन प्रश्नों को सुलझा लिया गया तो वह दिन दूर नहीं कि हम ओलंपिक के शिखर पर विराजमान होंगे।
सोमवार, 11 अगस्त 2008
कहाँ है सिमी का जन्मदाता????????
सिमी को १९९० में राम मन्दिर आन्दोलन के समय काफी विस्तार मिला। इस समय इसके आदर्श पुरूष ईरान के शिया धर्मगुरु अयातुल्ला खुमैनी थे। क्योंकि इन्होने ईरान के तानाशाह शासक रजा पहलवी को अमेरिका खदेड़ दिया था जो कि अमेरिका कि कठपुतली था।
सिमी अमेरिका का घोर विरोधी था क्योंकि इसकी नींव ही अमेरिका और पश्चिम विरोध पर रखी गई थी। सिमी देवबंद विचारधारा अर्थात सुन्नी होते हुए भी शिया धर्मगुरु और शिया देश का समर्थन करता था। लेकिन खुमैनी की मौत के बाद इराक-अमेरिका युद्घ में सद्दाम को हीरो के रूप में पेश किया। अफगानिस्तान पर तालिबान कब्जे के बाद सिमी ने कई शहरों की दीवारों पर अपना मोटो लिखा- 'नो डेमोक्रेसी, नो सेक्युलरिज्म, ओनली खिलाफत'। इसके लिए तर्क देते थे की कुरान में लिखा है कि मुसलमान एक दिन दुनिया पर अपना वर्चस्व कायम करेंगे।
जहाँ बाबरी मस्जिद का लाभ भाजपा ने उठाया वहीँ सपा और सिमी ने भी खूब लाभ उठाया। मुलायम ने मुस्लिम वोट बैंक के खातिर इस घाव को हमेशा ताजा रखा। सिमी ने बाकायदा बाबरी मस्जिद के आंसू बहते पोस्टर बनवाए जिसमे लिखा था- या इलाही भेज दे महमूद कोई। यहाँ १७ बार सोमनाथ मन्दिर तोड़ने वाले महमूद गजनी को याद किया जा रहा था।
धीरे-धीरे सिमी के सम्बन्ध आईएसआई और लश्कर-ऐ-तैयबा से हो गया। जमात-ऐ-इस्लामी ने ख़ुद को दिखाने के लिए सिमी से अलग कर लिया और विद्यार्थियों का अलग संगठन एसआईओ (स्टूडेंट ऑफ़ इस्लामिक ओर्गानैजेशन) बना लिया, जो मात्र कागजी ही है। वास्तव में सिमी, जमात-ऐ-इस्लामी कि ही हथियारबंद शाखा है।
गुरुवार, 7 अगस्त 2008
राजनीति का दलाल या राजनीति का व्यवसाई ????????
शनिवार, 7 जून 2008
रामू और चेतन भगत का सुंदर उपहार ....
जहाँ "सरकार राज" की कहानी महाराष्ट्र मे एक बहुराष्ट्रीय बिजली उत्पादन कम्पनी 'एनरान' के आने और उसी दशक मे वहाँ उभरे और उफान पर पहुंचे एक राजनैतिक परिवार की कहानी है। इसमे यह भी दिखाया गया गया है कि नेताओं का एक मात्र उद्देश्य पैसा कमाना होता है और इसके लिए वे अपने बड़े से बड़े दुश्मन से हाथ मिलाने मे भी नही चूकते हैं। पिछली फ़िल्म "आग" से रामू कि भद्द पिटी थी उसकी भरपाई यह फ़िल्म करेगी। ऐसी आशा है।
वहीं दूसरी ओर चेतन भगत का आया नया उपन्यास "थ्री मिस्टेक्स ऑफ़ माय लाइफ" ने भी इन गर्मियों मे काफी राहत दी है। युवाओं मे इस पुस्तक का काफी क्रेज देखा जा रहा है। इसमे भारतीय युवाओं के रिस्क उठाने कि प्रकृति के विषय मे बताया गया है।इसमे तीन दोस्तों की कहानी है। जो अहमदाबाद मे क्रिकेट का सामान बेचने की दुकान खोलते हैं। यह सच्ची घटनाओं पर आधारित है ऐसा बताया जा रहा है।
फिलहाल जो भी हो इन दोनों ने सही समय पर सुंदर तोहफा दिया है। और लोग इसका आनंद उठा रहे हैं।
मंगलवार, 3 जून 2008
कौन बनेगा उम्दा पत्रकार ????????
जंग को जीतने की बात छोडिये, सिर्फ़ जंग लड़ने की बात हो तो उसके लिए भी लाबिंग करनी पड़ती है। जैसे इराक पर हमले के पहले अमरीका को लाबिंग करनी पड़ी थी।
यही हाल प्यार का भी है कि प्यार को पाने के लिए लाबिंग करनी पड़ती है।
आइये पहले जाने कि "लाबिंग" का अर्थ क्या है?
"लाबिंग" का अर्थ है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने पक्ष मे करना ताकि विपक्षी पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाया जा सके और जीत हासिल कि जा सके। एक तरीके से यह जीत का मूलमंत्र है.
इसी जीत के मूलमंत्र को सदियों से हर कोई अपनाता चला आ रहा है. यह अलग बात है कि इसे लाबिंग के नाम से नही जाना जाता रहा होगा. आज सभी वर्ग इसी के रास्ते वैतरणी पार कर रहा है. इनमे से कुछ प्रमुख लोगों के ही नाम ही ले रहा हूँ (बाकि लोग क्षमा करें कि समयाभाव के कारण उनके नाम नही ले रहा हूँ.)
१- प्यार करने वाले.
२- युद्ध लड़ने वाले.
३- चुनाव लड़ने वाले.
४- आस्कर-पुरस्कार मे नामित.
५- फिल्मी-पुरुस्कार.
६- व्यापार-जगत.
७- माफिया-जगत और
८- मीडिया-जगत.
यह सभी अपनी सर्वोच्चता सिद्ध करने के लिए और शक्तिशाली बनने के लिए "लाबिंग' का सहारा लेते हैं. इसमे किसी भी विधि से ज्यादा से ज्यादा लोगों का समर्थन अपने लिए जुटाते हैं. जिसकी "लाबिंग" तगड़ी होती है वही जीतता है और उसी का सिक्का चलता है. "लाबिंग' का कर्यक्रम चौबीसों घंटे अनवरत चलता रहता है, चाहे परदे के पीछे या फ़िर परदे पर. जैसे इस समय अपने को श्रेष्ट साबित करने के लिए "ब्लागिंग कि लड़ाई" कि आड़ मे लाबिंग का कार्यक्रम काफी जोर-शोर से चल रहा है. इस लड़ाई मे एक-दूसरे को "गालियों से पिरोई मालायें" खूब पहनाई जा रही हैं. साथ ही साथ धमकाने और चरित्र-हनन के प्रयासों का अनवरत सिलसिला बरक़रार रखा गया है. जिससे उम्दा पत्रकार बना जा सके. अब हम जैसे "गुरुघंटाल" यह इंतजार कर रहे हैं कि "कौन बनेगा उम्दा पत्रकार?" का खिताब किसकी झोली मे जाएगा?
सोमवार, 2 जून 2008
महा-गुरु-घंटाल जी कहिन............
यह किस्सा तब का है जब मेरे गुरु "महा-गुरु-घंटाल जी" मुझे गुरु-घंटाल बनने का प्रयास कर रहे थे। उस समय महा-गुरु-घंटाल जी ने कहा था कि बेटा वक्त बदलने वाला है। तब मैं छोटा था इसलिए नही समझ पाया कि गुरु जी बातों मे क्या गूढ़ रहस्य छिपा है। किंतु इशारों मे ही समझा दिया था कि अब युद्ध के हथियार के रूप मे नई तकनीकि का प्रयोग होगा और लोग एक-दूसरे पर कीचड उछलने मे शर्मायेंगे अतः एक दूसरे को कीचड मे ही डुबो देंगे। और जगह-जगह मीडिया-वार देखने को मिलेगा। अब इसका प्रमाण देखने को मिल रहा है।
भोपाल तो प्रिंट मीडिया के लिए कुरुक्षेत्र बना हुआ है इससे मैंने आपको परिचित कराया ही था। अभी हाल ही मे मैं एक ब्लॉग पढ़ रहा था तो उसमे एक-दूसरे को स्तर से काफ़ी नीचे गिर कर गलियों के तोहफे दिए जा रहे थे। शर्मनाक बात यह है कि ये लोग पत्रकारिता के पेशे से जुड़े है और इस वर्ग को काफी बुद्धिजीवी, विद्वान तथा सहनशील माना जाता हैं.
वहीं दूसरी ओर एक अन्य ब्लागर ने अपने ब्लाग मे लिखा था की "नाम के लिए साला कुछ भी करेगा, चोरी भी करेगा.."। कारण यह था की एक दूसरे ब्लागर ने पहले वाले के ब्लाग से एक स्टोरी चुराकर एक अखबार मे 'संपादक के नाम पत्र' मे भेज दिया था. हालांकि बाद मे उसने माफ़ी भी मांग ली थी.
हिन्दी-ब्लाग अभी नवजात शिशु के रूप मे है तभी से उसमे ऐसी विकृति देखने को मिल रही है तो किशोर, वयस्क और प्रौढ़ होने पर क्या होगा? यह एक विचारणीय प्रश्न है। इस पर सभी ब्लागरों को शायद विचार करना चाहिए. ब्लाग रचनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम है न कि विध्वन्सात्मकता का. ऐसी चीजों पर रोक लगनी चाहिए.
हो सकता है कि कुछ लोग कहें कि उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। है भाई बिल्कुल है, मैंने कब कहा नही है लेकिन तब तक, जब तक दूसरे के अधिकारों का हनन न हो.
इन चीजों से एक चीज निकल कर सामने आई है कि महा-गुरु ने सही कहा था।
जय हो महा गुरु जय हो. अब मेरे दिल मे महागुरु के दर्शन की इच्छा प्रबल हो रही है.
मैं चला दर्शन करने............दर्शन के बाद शीघ्र मिलूंगा.
रविवार, 1 जून 2008
" जब अख़बार मुकाबिल हो तो तलवार निकलों."
शनिवार, 31 मई 2008
फिल्मों का बदलता ट्रेंड....कामेडी से एक्शन की ओर.
शुक्रवार, 30 मई 2008
एक भूल के क्या मायने हो सकते हैं?
आज दिनांक ३० मई ०८ को मैंने पोर्टल पर समाचार देखने के लिए बीबीसी खोला तो मनोरंजन के कालम मे पहली ख़बर थी कि "हाथी ने सात लोगों को कुचल कर मारा" ।
मेरी समझ मे नही आया कि सात लोगों के मरने की ख़बर मनोरंजन कैसे हो सकती है? इसके दो कारण हो सकते है - * या तो लोगों मे मानवता खत्म हो गई है कि आदमी के जान की कीमत कुछ नही है , तो इसे मनोरंजन माना जा सकता है।
* या फ़िर ऐसा गलती से हो गया।
इसमे दूसरा कारण ही सत्य प्रतीत होता है। अगर दूसरा कारण सत्य है तो यह भी अच्छी बात नही है। अधिकांश लोग बीबीसी को सबसे तेज और सर्वाधिक सत्य मानते हैं। इससे ऐसी गलती कि उम्मीद नही थी और तो और शाम तक इसे सुधारा भी नही जा सका। क्या इस भूल के कोई मायने है?
गुरुवार, 29 मई 2008
प्रिंट मीडिया का कुरुक्षेत्र बना भोपाल.......
बुधवार, 28 मई 2008
आख़िर दंत-कथा सत्य सिद्ध हुई.
रविवार, 25 मई 2008
बेस्ट ''आई एस आई'' सपोर्टर अवार्ड ......
अर्जुन सिंह का नया अवतार कर्नल बैंसला ?????
शुक्रवार, 23 मई 2008
नौटंकी चालू आहे .
इसी कड़ी मे उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के कांग्रेस कर्यालय मे सोनिया गाँधी को माँ दुर्गा के रूप मे चित्रित कर के लगाया है। वहीं राजस्थान कि मुख्यमंत्री वसुन्धरा राजे सिंधिया को भी माँ दुर्गा के रूप मे चित्रित किया जा चुका है। मायावती, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव और नीतीश कुमार कि चालीसा भी पूर्व मे बनाईं जा चुकी हैं।
इस प्रकार कि चाटुकारिता का अलग ही आनंद है। यह आनंद कोई भी नेता खोना नही चाहता है। भाई, कहीं तोउनकी पूजा हो रही है, इस प्रकार कि भक्ति मे भक्त को वरदान मिलता है। वह वरदान चुनाव टिकट से लेकर विदेश यात्रा, ठेके से लेकर मंत्रिपद कुछ भी हो सकता है।
तो भाइयों इच्छित वरदान के लिए आप भी भक्ति शरू कर दो।............मैं .......मैं भी चला भक्ति करने।
ॐ नेताय नमः।
गुरुवार, 22 मई 2008
जरनल जिया-उल-हक़ का "ईशनिंदा क़ानून".
दिल्ली विश्वाविद्यालय के इतिहास पर दायर याचिका खारिज.
बुधवार, 21 मई 2008
कश्मीर को समस्या बनाने के जिम्मेदार तीन प्रमुख व्यक्ति ?
सोमवार, 19 मई 2008
पुतिन रूस के सर्वोच्च नेता क्यों?
रविवार, 18 मई 2008
दिल फाड़ दिया.......
मकबूल फ़िदा हुसैन आज-कल फ़िर चर्चा मे आ गए हैं
और लोगों के दिमाग पर कुछ समय के लिए छा गए है।
इस बार भी कारनामा कोई नया नही पुराना है
फर्क सिर्फ़ इतना की नई हिरोइन पर दिल का आना है।
और 'माधुरी नेने' बनने से इनका दिल टूटा था।
अब ये टूटे दिल पर 'अमृता राव' नामक मरहम लगा रहे हैं
और पोती समान तारिका को इश्क के लिए पटा रहे हैं।
इतना ही काफी नही है इनके लिए
मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया को दिखा रहे हैं
और प्रचार भी खूब पा रहे हैं।
इन्होने 'हम आपके हैं कौन' देखने का रिकार्ड बनाया था
और 'माधुरी दीक्षित' से दिल लगाया था।
वादा कर रहे हैं 'विवाह' देखने का भी रिकार्ड बनायेंगे
और पूर्व की भांति 'अमृता राव' से दिल लगायेंगे।
ऐसे बुड्ढे को सरेआम दे देनी चाहिए फांसी