सोमवार, 11 अगस्त 2008

कहाँ है सिमी का जन्मदाता????????




जमात-ऐ-इस्लामी के सदस्य और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र मोहम्मद अहमदुल्ला सिद्दीकी ने १९७७ में सिमी(स्टूडेंट ऑफ़ इस्लामिक मूवमेंट ऑफ़ इंडिया) की स्थापना की थी। जिसका उद्देश्य भारतीय मुसलमानों को पश्चिम की मूल्यहीन संस्कृति से मुक्ति दिलाना था, परन्तु विडम्बना देखिये कि वही अहमदुल्ला अमेरिका के एक विश्वविद्यालय में जनसंचार का शिक्षक है। इन्होने इस बात का अफ़सोस जताया कि सिमी अपने उद्देश्य से भटक गया है क्योंकि इस्लाम हिंसा कि शिक्षा नही देता।
सिमी को १९९० में राम मन्दिर आन्दोलन के समय काफी विस्तार मिला। इस समय इसके आदर्श पुरूष ईरान के शिया धर्मगुरु अयातुल्ला खुमैनी थे। क्योंकि इन्होने ईरान के तानाशाह शासक रजा पहलवी को अमेरिका खदेड़ दिया था जो कि अमेरिका कि कठपुतली था।
सिमी अमेरिका का घोर विरोधी था क्योंकि इसकी नींव ही अमेरिका और पश्चिम विरोध पर रखी गई थी। सिमी देवबंद विचारधारा अर्थात सुन्नी होते हुए भी शिया धर्मगुरु और शिया देश का समर्थन करता था। लेकिन खुमैनी की मौत के बाद इराक-अमेरिका युद्घ में सद्दाम को हीरो के रूप में पेश किया। अफगानिस्तान पर तालिबान कब्जे के बाद सिमी ने कई शहरों की दीवारों पर अपना मोटो लिखा- 'नो डेमोक्रेसी, नो सेक्युलरिज्म, ओनली खिलाफत'। इसके लिए तर्क देते थे की कुरान में लिखा है कि मुसलमान एक दिन दुनिया पर अपना वर्चस्व कायम करेंगे।

जहाँ बाबरी मस्जिद का लाभ भाजपा ने उठाया वहीँ सपा और सिमी ने भी खूब लाभ उठाया। मुलायम ने मुस्लिम वोट बैंक के खातिर इस घाव को हमेशा ताजा रखा। सिमी ने बाकायदा बाबरी मस्जिद के आंसू बहते पोस्टर बनवाए जिसमे लिखा था- या इलाही भेज दे महमूद कोई। यहाँ १७ बार सोमनाथ मन्दिर तोड़ने वाले महमूद गजनी को याद किया जा रहा था।
धीरे-धीरे सिमी के सम्बन्ध आईएसआई और लश्कर-ऐ-तैयबा से हो गया। जमात-ऐ-इस्लामी ने ख़ुद को दिखाने के लिए सिमी से अलग कर लिया और विद्यार्थियों का अलग संगठन एसआईओ (स्टूडेंट ऑफ़ इस्लामिक ओर्गानैजेशन) बना लिया, जो मात्र कागजी ही है। वास्तव में सिमी, जमात-ऐ-इस्लामी कि ही हथियारबंद शाखा है।