मंगलवार, 12 अगस्त 2008

अभिनव बिंद्रा ने तोडी ओलम्पिक की निद्रा..........




बीजिंग ओलंपिक में अभिनव ने ११२ वर्षों के बाद भारत की ओर व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीत कर वह महान क्षण रच दिया जिसका सभी भारतीयों को इंतजार था। निःसंदेह यह वह क्षण है जिसे भारत हमेशा याद रखेगा। ऐसा ही इतिहास १९८३ में कपिल ने रचा था।
भारत ने अब तक ८ स्वर्ण पदक जीते थे वह भी हाकी में। परन्तु इस बार हाकी में क्वालीफाई न कर पाने के कारण भारतीयों की रूचि ओलंपिक से ख़त्म हो गई थी। लेकिन अभिनव के निशाने ने आगे की उम्मीदें जगा दी हैं। १९८० के बाद मिले इस स्वर्ण ने बाकियों को भी प्रोत्साहित किया है कि वे भी अपना सर्वस्व झोंक दें।
इस प्रदर्शन पर अभिनव पर करोड़ों कि बरसात हुई है। क्या अभिनव इसमे से कुछ हिस्सा निशानेबाजी या अन्य खेलों के विकास के लिए देंगे? हालाँकि उन्होंने अपनी तैयारी पर १० करोड़ खर्च किए हैं। वे सक्षम थे अतः ऐसा कर पाए। क्या स्वर्ण कि राह दिखने के बाद उस पर दौड़ने में भी मदद करेंगे?
वहीँ बिंद्रा पर करोड़ों कि बरसात करने वाले राज्य और सरकारों ने क्या यह तय कर रखा है कि जीतने पर ही पैसे लुटाएंगे, जीतने कि तैयारी करने पर नहीं? क्रिकेट को छोड़कर अन्य खिलाड़ी संसाधनों और कोच का रोना रोते हैं, क्या उस दिशा में भी सरकारें समुचित कदम उठाएंगी?
यदि इन प्रश्नों को सुलझा लिया गया तो वह दिन दूर नहीं कि हम ओलंपिक के शिखर पर विराजमान होंगे।

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