बुधवार, 20 अगस्त 2008

श्राइन बोर्ड तो बहाना है, कहीं और निशाना है.


५० दिन से जलता जम्मू और कश्मीर.........
रोटी सेंकते अलगाववादी और विदेशी ताकतें.........
जूठन के लालच में खड़े राजनैतिक दल और नेता.........
इनके बीच पिसते राज्य के आम नागरिक..........
मूक दर्शक बनी देश की जनता........
यह भयावह तस्वीर है उस देश की जो इस मिथ्याभिमान में झूम रहा है की वह महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है।
बंद के ५० दिन पूरे होने पर नेताओं के तेवर ढीले पड़ गए हैं लेकिन वहां की जनता में अभी भी जोश बरक़रार है। २ लाख महिलाओं की गिरफ्तारी पर उन्हें एक १५ साल की किशोरी संबोधित करते हुए कह रही थी कि हम अपना हक़ और जमीन दोनों वापस ले कर रहेंगे। गिरफ्तारी देने गई सभी महिलाएं अपना नाम पार्वती,पति का नाम शिवशंकर और निवासी बालटाल बता रही थीं।
जहाँ अलगाववादियों और पाकिस्तान का उद्देश्य कश्मीर को तोड़कर पाक में विलय करना है वहीँ जम्मू लगातार अपनी उपेक्षा और भेदभाव से परेशान होकर इसी बहाने आर-पार कि लडाई लड़ने के मूड में दिख रहा है। मुस्लिमों को जमीन देने पर कोई ऐतराज नही था क्योंकि यह जमीन बंजर थी और साल में ८ महीने यहाँ बर्फ जमी रहती है अतः इसका कोई ख़ास उपयोग नही था परन्तु कट्टरवादी नेताओं ने गुमराह कर भड़काया कि धीरे-धीरे हिंदूवादी ताकतें कब्जा करना चाहती हैं जिससे वे घबरा गए और बहककर उनके साथ हो गए।
अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी खुलेआम जम्मू और कश्मीर के पाकिस्तान में विलय की मांग कर रहे हैं,वहीँ पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती भी मुजफ्फराबाद मार्च में उनके समर्थन में आ खड़ी हुई। आन्दोलन की कमान नेताओं के हाथ से निकलकर जनता व अलगाववादिओं के हाथ में आ गई है।
कई पंथनिरपेक्ष पार्टियाँ तो इन्ही अलगाववादिओं के सुर में ही राग अलापना चाहती हैं और इसकी कोशिश भी करती दिख रही हैं। अरुंधती राय ने आजाद-कश्मीर की वकालत भी कर डाली लेकिन इसके विरोध में किसी ने भी बोलने की जहमत नही उठाई।
सुरक्षा एजेंसियां चिल्ला-चिल्ला कर कह रही हैं कि आन्दोलन में कई उग्रवादी शामिल हैं परन्तु सरकार इस पर ध्यान न देकर नरम रवैया अपनाए हुए है जिससे सुरक्षा बल कार्यवाही नही कर पा रहे हैं।अलगाववादियों द्वारा इसे संयुक्त राष्ट्र में ले जाने कि मांग कि जा रही है. दुबारा इसका अंतर्राष्ट्रीयकरण होते देखकर सरकार के हाथ-पैर फूल चुके हैं और वह किंकर्तव्यविमूढ है. क्या विश्वासमत में मिले पीडीपी के एक वोट के एहसान तले संप्रग सरकार इतनी दब गई है कि उचित कार्यवाही तो दूर वह फटकार भी नही सकती है? सरकार के साथ सभी पार्टियाँ और नेता पूरी तरह भ्रमित नजर आ रहे हैं. यही है महाशक्ति बनने का सपना?
घाटी में कट्टरपंथियों ने ४ दिन बवाल मचाया तो फ़ौरन जमीन वापस ले ली जबकि जम्मू में ५० दिन से चल रहे आन्दोलन से सरकार कि नीद नही खुल रही है. १५ अगस्त को घाटी में काला दिवस मनाया गया. तिरंगे को जलाया गया,पाकिस्तानी झंडे को लहरा के नारे लगाये गए कि भारत तेरी मौत आए,मिल्लत आए. सारा दिन मस्जिदों से लाउडस्पीकरों में चिल्लाये कि हमको आजादी चाहिए। श्रीनगर के लाल चौक पर ध्वजारोहण के बाद तिरंगा उतारकर पाकिस्तानी झंडा फहराया. क्या यह हमारी देश कि संप्रभुता का अपमान नही है? क्या यह राष्ट्रद्रोह नही है? मुजफ्फराबाद मार्च में भी व्यापर मार्ग खोलने कि बू आती है. क्या इजराइल,अमेरिका,चीन या रूस ऐसी स्तिथि में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते या फ़िर ऐसे लोगों को नेस्तोनाबूत कर देते? न कोई मीडिया होता,न कोई मानवाधिकार होता और अगर कोई दूसरा देश बोलता तो उसे भी फाड़ खाते. देश चलाने वालों जरा सीखो इनसे......
.जय हिंद.

1 टिप्पणी:

कुन्नू सिंह ने कहा…

हम तो ये बात है। कई लोग कहते हैं की भारत तर्क्की कर रहा है पर ऎसे हालातो को तो देख कर यही लगता है की भारत वीकास मे नही बलकी ऎसे ही लडाईयो और हादसो मे तरक्की कर रहा है।