गुरुवार, 28 अगस्त 2008

आरक्षण बढायेंगे, देश को मिटायेंगे.....

आरक्षण को लेकर केन्द्र सरकार और आईआईटी संस्थान दोनों आमने-सामने आ गए हैं। इस मुद्दे को लेकर दोनों में टकराव अवश्याम्भवी दिख रहा है। दोनों की अपनी सोंच है और दोनों के अपने लाभ जुड़े हैं। अपने इसी लाभ को देखते हुए कोई भी पीछे हटने को तैयार नही है। एक तरफ़ हैं केन्द्र सरकार है तो दूसरी ओर उच्च संस्थान, एक आरक्षण के पक्ष में है तो दूसरा विरोध में, एक के लिए राजनैतिक हित अहम् हैं तो दूसरे के लिए राष्ट्रहित ओर एक पक्ष अपना वोट बैंक देख रहा है तो दूसरा संस्थान की गुणवत्ता का हित. इन्ही कारणों से सरकार ओर संस्थान आमने-सामने आ गए हैं।

इस टकराव की शुरुवात तब हुई जब आईआईटी निदेशकों को केन्द्र सरकार ने एक निर्देश जारी किया और कहा कि अनुसूचित जाति, जनजाति और अन्य पिछडा वर्ग के शिक्षकों कि भर्ती में ४९।५% आरक्षण सुनिश्चित किया जाय। वहीं साथ ही साथ आईआईटी- जेईई परीक्षा में शामिल होने के लिए तय मानक १२वीं की परीक्षा में ६०% अंक को घटाकर ५०% करने का निर्देश दिया है।

जबकि ज्वाइंट एडमिशन बोर्ड मौजूदा ६०% को बढाकर ८५% करने का विचार कर रहा है। २४ अगस्त को खड़कपुर में हुई बैठक में इस पर चर्चा हुई।

आईआईटी गुवाहाटी केन्द्र के निदेशक गौतम बर्मन ने जोरदार तर्कों के साथ इसका विरोध किया है। उन्होंने १९७२ में केन्द्र सरकार द्वारा जारी आदेश का हवाला देते हुए कहा है कि अन्तरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और रक्षा संस्थानों में आरक्षण का कोई प्रावधान नही है। लिहाजा राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों को भी इसमे शामिल करना चाहिए।

बर्मन जी कि बात पूरी तरह जायज है कि आप वोट की राजनीति करो, सबसे पहले अपना हित देखो लेकिन कम से कम राष्ट्रीय महत्त्व और राष्ट्रहित से जुड़े मुद्दों को अनदेखा तो न करो. क्योंकि यह चीजें राष्ट्र का अहित करती हैं और आने वाली पीढियों के रास्ते को बाधित ही नही करेंगी बल्कि पूरी तरह से उनके विकास के रास्तों को बंद कर देंगी. पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और मानव संसाधन विकास मंत्री अर्जुन सिंह ने आरक्षण की फसल काटकर देख लिया लेकिन उन्हें हासिल क्या हुआ? आज वे कहाँ हैं? इतिहास में वे किसलिए याद किए जायेंगे? इन प्रश्नों के उत्तर ढूंढने मात्र से ही पता चल जाएगा कि आरक्षण से हित हो रहा है या अहित।

यह वही नेता हैं जो चाहते हैं कि सभी जगह आरक्षण हो जाए। चाहे वो एम्स हो या फ़िर आईआईटी या आईआईएम जैसे उच्च संसथान। इनका बस चले तो सेना को भी पूरी तरह आरक्षित कर दें। चूँकि अपना कुछ जा नही रहा है तो दूसरे कि जेब से देने में क्या जाता है? सारे नेता यही सोंच रखते हैं। जब यह बीमार पड़ते है तो अपना इलाज भारत में करना भी मुनासिब नही समझते हैं। और इसके लिए इन्हे फुर्र से विदेश उड़ जाना ज्यादा अच्छा लगता है। ऐसे हैं दोहरे चरित्र वाले नेता जो अपने देश की बागडोर अपने हाथ में लिए है। अब आप ख़ुद सोंचिये कि इन परिस्तिथियों में ये अपने देश को रसातल में पहुँचा कर ही दम लेंगे। इनका एकमात्र ध्येय आरक्षण बढाकर देश को मिटाना है। ऐसे नेताओं का नारा है कि- आरक्षण बढायेंगे, देश को मिटायेंगे।

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