




गोरखा जनमुक्ति मोर्चा ( जीजेएम ) ने पश्चिम बंगाल के दार्जलिंग पर्वतीय क्षेत्र में सामानांतर सरकार की स्थापना कर ली है। मोर्चा ने २ महीने पहले ही गोरखालैंड का नक्शा तय किया और उसके नेताओं ने नक्शे के हिसाब से सीमा पर झंडे भी गाड़ दिए। मोर्चा स्वप्रस्तावित क्षेत्र में वाहनों के नंबर प्लेट बदलवा रही है और ड्रेस कोड भी लागू कर रही है। पृथक राज्य की मांग करने वाले जीजेएम की तानाशाही के आगे राज्य सरकार और जिला प्रशासन ने घुटने टेक दिए हैं।
हांलाकि अलग राज्य की मांग की लडाई १९८० में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट ( जीएनएलएफ ) ने शुरू की थी। बाद में वह स्वायत्ता के लिए तैयार हो गई थी। जब इसने दार्जलिंग को भारतीय संविधान की ६वीं अनुसूची के अंतर्गत लाना चाहा तो जीएनएलएफ और विमल गुरांग के बीच दरार पड़ गई और विमल ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा बना लिया। साथ ही दार्जलिंग क्षेत्र को अलग राज्य बनने के लिए फ़िर नए सिरे से अभियान छेड़ दिया।
२८ जुलाई को जीजेएम ने दार्जलिंग क्षेत्र में स्वराज की घोषणा की. जिसके अंतर्गत सभी अधिकारियों को बंगाल सरकार के बजाय उनके नेताओं से आदेश लेने का फरमान जारी किया। साथ ही गुरांग ने कहा कि अब स्थानीय स्तर के सभी मामले मोर्चा देखेगी और बंगाल सरकार का कोई दखल नही होगा। यह अलग राज्य कि दिशा में पहला कदम है। इसी प्रकार बंगाल सरकार अप्रभावी होगी।
कुछ दिनों पूर्व फायरिंग में मोर्चा समर्थक एक महिला मारी गई थी और आरोप था कि घिसिंग की जीएनएलएफ के एक नेता ने करवाया था। इसके बाद जीएनएलएफ के खिलाफ हिंसा शुरू हो गई। दार्जलिंग गोरखा हिल कौंसिल के अध्यक्ष सुभाष घिसिंग के घर पर हमला हुआ और कौंसिल के ४ पार्षदों के घर जला दिए गए। पहाडियों के बेताज बादशाह घिसिंग को पहाड़ छोड़कर भागना पड़ा और उत्तरी बंगाल के सिलीगुडी में शरण लेनी पड़ी। इसके बाद जीएनएलएफ और सत्तारूढ़ कमुनिस्ट पार्टी के बहुत से नेताओं को जाने का आदेश दे दिया।
इसके बावजूद भी मोर्चा का दावा है की आन्दोलन लोकतांत्रिक है। गुरांग ८ सितम्बर की दिल्ली की त्रिपक्षीय बैठक का इंतजार भी कर रहे हैं और पहाडी क्षेत्रों में अपनी हुकूमत भी चला रहे हैं।
वाहनों के नंबर प्लेट में डब्ल्यू बी ( वेस्ट बंगाल ) की जगह जी एल ( गोरखालैंड ) करने की अन्तिम समय सीमा सरकारी वाहनों के लिए ७ अगस्त और निजी के लिए २५ अगस्त मोर्चा ने तय किया था। मोर्चा समर्थकों के उपद्रव से डरकर सरकारी अधिकारी सरकारी वाहनों को छोड़कर निजी टैक्सियों से यात्रा कर रहे हैं। मोर्चा नेताओं ने पहले से ही अपनी गाड़ियों पर जी एल ( गोरखालैंड ) लिखा रखा था। अब निजी टैक्सियों के भी नंबर भी बदले जा रहे हैं। पहाडी क्षेत्रों में डब्ल्यू बी ( वेस्ट बंगाल ) लिखी गाड़ियों से जुरमाना वसूला जा रहा रहा है और नंबर प्लेटों पर कालिख पोता जा रहा है। ३० रुपये पंजीकरण शुल्क में नंबर भी बदले जा रहे हैं। नंबर बदलवाने को लेकर मोर्चा चेतावनी देता है की आगे पहाडियों में दिक्कत आ सकती है। २६ अगस्त को १०० से अधिक गाड़ियों के नंबर प्लेटों पर कालिख पोती गई।
मोर्चा अध्यक्ष गुरांग कहते हैं कि नंबर प्लेट बदलने का लोग समर्थन कर रहे हैं और कालिख में मोर्चा का हाथ नही है, क्योंकि ऐसा आदेश नही दिया गया। जबकि प्रचार सचिव विनय तामांग का कहना है कि यह जिम्मा परिवहन समिति को सौंपा गया था। शायद उसके लोगों ने ऐसा किया हो।
गुरांग का दावा है कि यह निर्देश अलग राज्य के प्रति लगाव और इलाके में एकरूपता पैदा करने के लिए दिए गए हैं। वे इसे असंवैधानिक नही मानते और तर्क देते हैं कि अगर यह असंवैधानिक होता तो क्या सरकार चुपचाप बैठी रहती?
अभी ताजा फरमान के मुताबिक अगले पर्यटन सीजन में पारंपरिक गोरखा ड्रेस पहननी है।
हांलाकि अलग राज्य की मांग की लडाई १९८० में गोरखा नेशनल लिबरेशन फ्रंट ( जीएनएलएफ ) ने शुरू की थी। बाद में वह स्वायत्ता के लिए तैयार हो गई थी। जब इसने दार्जलिंग को भारतीय संविधान की ६वीं अनुसूची के अंतर्गत लाना चाहा तो जीएनएलएफ और विमल गुरांग के बीच दरार पड़ गई और विमल ने गोरखा जनमुक्ति मोर्चा बना लिया। साथ ही दार्जलिंग क्षेत्र को अलग राज्य बनने के लिए फ़िर नए सिरे से अभियान छेड़ दिया।
२८ जुलाई को जीजेएम ने दार्जलिंग क्षेत्र में स्वराज की घोषणा की. जिसके अंतर्गत सभी अधिकारियों को बंगाल सरकार के बजाय उनके नेताओं से आदेश लेने का फरमान जारी किया। साथ ही गुरांग ने कहा कि अब स्थानीय स्तर के सभी मामले मोर्चा देखेगी और बंगाल सरकार का कोई दखल नही होगा। यह अलग राज्य कि दिशा में पहला कदम है। इसी प्रकार बंगाल सरकार अप्रभावी होगी।
कुछ दिनों पूर्व फायरिंग में मोर्चा समर्थक एक महिला मारी गई थी और आरोप था कि घिसिंग की जीएनएलएफ के एक नेता ने करवाया था। इसके बाद जीएनएलएफ के खिलाफ हिंसा शुरू हो गई। दार्जलिंग गोरखा हिल कौंसिल के अध्यक्ष सुभाष घिसिंग के घर पर हमला हुआ और कौंसिल के ४ पार्षदों के घर जला दिए गए। पहाडियों के बेताज बादशाह घिसिंग को पहाड़ छोड़कर भागना पड़ा और उत्तरी बंगाल के सिलीगुडी में शरण लेनी पड़ी। इसके बाद जीएनएलएफ और सत्तारूढ़ कमुनिस्ट पार्टी के बहुत से नेताओं को जाने का आदेश दे दिया।
इसके बावजूद भी मोर्चा का दावा है की आन्दोलन लोकतांत्रिक है। गुरांग ८ सितम्बर की दिल्ली की त्रिपक्षीय बैठक का इंतजार भी कर रहे हैं और पहाडी क्षेत्रों में अपनी हुकूमत भी चला रहे हैं।
वाहनों के नंबर प्लेट में डब्ल्यू बी ( वेस्ट बंगाल ) की जगह जी एल ( गोरखालैंड ) करने की अन्तिम समय सीमा सरकारी वाहनों के लिए ७ अगस्त और निजी के लिए २५ अगस्त मोर्चा ने तय किया था। मोर्चा समर्थकों के उपद्रव से डरकर सरकारी अधिकारी सरकारी वाहनों को छोड़कर निजी टैक्सियों से यात्रा कर रहे हैं। मोर्चा नेताओं ने पहले से ही अपनी गाड़ियों पर जी एल ( गोरखालैंड ) लिखा रखा था। अब निजी टैक्सियों के भी नंबर भी बदले जा रहे हैं। पहाडी क्षेत्रों में डब्ल्यू बी ( वेस्ट बंगाल ) लिखी गाड़ियों से जुरमाना वसूला जा रहा रहा है और नंबर प्लेटों पर कालिख पोता जा रहा है। ३० रुपये पंजीकरण शुल्क में नंबर भी बदले जा रहे हैं। नंबर बदलवाने को लेकर मोर्चा चेतावनी देता है की आगे पहाडियों में दिक्कत आ सकती है। २६ अगस्त को १०० से अधिक गाड़ियों के नंबर प्लेटों पर कालिख पोती गई।
मोर्चा अध्यक्ष गुरांग कहते हैं कि नंबर प्लेट बदलने का लोग समर्थन कर रहे हैं और कालिख में मोर्चा का हाथ नही है, क्योंकि ऐसा आदेश नही दिया गया। जबकि प्रचार सचिव विनय तामांग का कहना है कि यह जिम्मा परिवहन समिति को सौंपा गया था। शायद उसके लोगों ने ऐसा किया हो।
गुरांग का दावा है कि यह निर्देश अलग राज्य के प्रति लगाव और इलाके में एकरूपता पैदा करने के लिए दिए गए हैं। वे इसे असंवैधानिक नही मानते और तर्क देते हैं कि अगर यह असंवैधानिक होता तो क्या सरकार चुपचाप बैठी रहती?
अभी ताजा फरमान के मुताबिक अगले पर्यटन सीजन में पारंपरिक गोरखा ड्रेस पहननी है।
घिसिंग कि पत्नी की मृत्यु के बाद पहाडियों में उनके अन्तिम संस्कार की भी इजाजत मोर्चा ने नही दी थी। राज्य सरकार शान्ति बहाली की दलील देकर मोर्चा की सारी सही-ग़लत बातें मानती रही है, जिससे उनका हौसला बढ़ा हुआ है। सरकार भी टाटा-ममता विवाद में उलझी हुई है और इस विकराल राक्षस का रूप धारण करती समस्या की ओर ध्यान नही दे रही है। फलस्वरूप मोर्चा ने बंगाल में एक सामानांतर सत्ता की स्थापना कर ली है। सरकार को चाहिए कि इसका हल बातचीत से निकला जाय और क़ानून तोड़ने वालों को दण्डित किया जाय। साथ ही सरकार को यह संकेत देना चाहिए कि वार्ता के दौरान मोर्चा कि ऐसी हरकतें प्रतिकूल प्रभाव डालेंगी।
चित्र साभार :- गूगल
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