नाम:- काल- कपाल
योग्यता:- २५ प्रकार के साँपों की पहचान है।
अनुभव:- पिछले १२ वर्षों से सपेरे का काम कर रहे हैं।
यह रिज्यूम होगा आने वाले सालों में टीवी चैनल्स के लिए अप्लाई करने वाले सर्पकारों का....ऊप्स सॉरी सो कॉल्ड पत्रकारों का। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में जिस तरह नागों की फेस वैल्यू बढती जा रही है, हो सकता है सपेरों को अपनी फेस वल्यु पता चले और वे आने वाले सालों में इस क्षेत्र में अपना कैरिअर बनाना चाहें।
सोंचिये यदि ऐसा हुआ तो क्या होगा?
नाग-पंचमी का दृश्य स्टूडियो में एक सर्पकार कह रहा होगा - हम अपने दर्शकों को बता दें की आज दिन है नाग लोक के राष्ट्रीय त्यौहार का। आज के दिन आज यहाँ झंडा वंदन होता है। शेषनाग और तक्षक राष्ट्र के नाम सन्देश प्रेषित करते हैं और फुंफकार प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। आज के दिन सभी लोग एक-दूसरे को दूध पिलाते हैं।
तो क्या रिपोर्टर बेरोजगार हो जायेंगे?
नहीं जी..... रिपोर्टर घर-घर जाकर पृथ्वी लोक के प्राणियों को टोकरी में रखे कैमरे और माइक दिखायेंगे। लोग उनकी पूजा करेंगे और पत्रकारों को पैसे और पुराने कपड़े देंगे।
तो आगे-आगे देखिये होता है क्या?
आगे के दृश्यों की चर्चा अगले अंक में....इजाजत दीजिये....नमस्कार।
साभार: नम्रता पंडित
शनिवार, 21 मार्च 2009
शुक्रवार, 9 जनवरी 2009
एचआईवी पीड़ित और एड्स पीड़ित में अन्तर

मित्रों, एक बार फ़िर से आप लोगों के सामने एक नई कविता लेकर हाजिर हूँ. इस नव वर्ष कि यह प्रथम रचना है. आशा है कि आप लोगों को यह पसंद आएगी.
जी हाँ, मैं एचआईवी पोजिटिव हूँ,
मात्र एचआईवी पोजिटिव,
एड्स पीड़ित नही।
लेकिन आप लोग एड्सग्रसित दिखते हैं
सोंचिये ऐसा क्यों है ?
चक्कर में पड़ गए न
कि बिना एचआईवी के एड्स रोगी?
जी हाँ, यह कटु सत्य है
मैं समाज में पहले की भांति ही जीना चाहता हूँ,
मैं चाहता हूँ की लोग मेरे प्रति सहानुभूति न रखें,
मेरे साथ अछूत जैसा व्यवहार न करें।
लेकिन
यह एड्सग्रस्त समाज है
जिसमे तथाकथित,
जी हाँ तथाकथित
बुद्धिजीवी, समाजसेवी और उत्कृष्ठ लोग रहते हैं,
जो मेरे जीने की इच्छा को
दबाकर ख़त्म कर देना चाहते हैं,
मुझे मरना चाहते हैं।
अब आप ही बताएं
कि एड्स पीड़ित कौन है?
जानलेवा बीमारी से ग्रसित कौन है?
क्या वो नही
जो एचआईवी पीड़ित की जान लेना चाहते हैं।
बेहतर होगा कि
आप मेरी अपेक्षा
इन तथाकथितों की चिंता करें
और
इनके इलाज कि व्यवस्था करें
अगर
इस एड्स ग्रसित समाज को
इस जानलेवा बीमारी से मुक्ति मिल गई
तो एचआईवी पीडितों को
मात्र एचआईवी से लड़ना पड़ेगा,
समाज से नही।
और
वे बेहतर ढंग से जीवन जी सकेंगे,
जी हाँ,
जीवन को जी सकेंगे।
चित्र साभार : गूगल
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