गुरु-घंटाल (Grooghantaal)
अहं ब्रह्मास्मि.........
मंगलवार, 15 नवंबर 2011
जुलाई २००१ की शायरी
अपने गुनाहों को कहीं भूल न जाऊं
इसलिए बद्दुआएं उसकी साथ रखता हूँ.
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एक परिचय
shivam
India
खोपडी मे आए विचारों की धमा-चौकडी से निजात पाने के लिए ब्लॉग की शरण मे कभी-कभी आ जाता हूँ. उंगलियों की मदद से इसे "गुरुघंटाल" को स्थानांतरित कर देता हूँ.
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
मेरे बारे में...
ताजो तख्त नहीं,
मगर दिल में शहंशाह की हिम्मत है.
हर कदम पर जूझते हुए आगे बढा हूँ,
हर चीज़ को पाने के लिए लड़ा हूँ,
आज जो कुछ भी हूँ, खुद की बदौलत हूँ,
खुद के हौंसले से,
मेरे लिये मुश्किल का अर्थ है मुकाबला.
डर!
उफ़ ये किस चिड़िया का नाम है????
मेरे सामने तो सिर्फ मंजिलें हैं, सिर्फ मुकाम हैं.
देखना, ज़िन्दगी की शाम मे मेरे चेहरे पे झुर्रियां होंगी,
और आँखों मे नई सुबह की रोशनी,
और मैं कहूँगा-
सिर्फ जिंदा नहीं रहा मैं,
ज़िन्दगी जी है मैंने अपनी शर्तों पर!
तारीख, जो गवाह बनेगी
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