रविवार, 1 जून 2008

" जब अख़बार मुकाबिल हो तो तलवार निकलों."


जिस प्रकार समुद्र-मंथन से विष और अमृत दोनों निकला था उसी प्रकार मीडिया-मित्र द्वारा आज भोपाल मे आयोजित "मीडिया-वार किसके हित मे?" विषय मे दोनों चीजें निकल कर सामने आई हैं। इस मंथन की रस्साकसी मे भाग लेने वाले ज्यादातर मीडिया से जुड़े पत्रकार व संपादक ही थे। इनके अतिरिक्त कुछ पाठक भी थे जैसे बैंक कर्मचारी, छात्र आदि।

भोपाल जो आज-कल मीडिया का कुरुक्षेत्र बना हुआ है। इस पर कुछ लोगों की राय थी की यह ठीक नही है, वहीं कुछ लोगों के विचार थे कि इस से पत्रकारों ,पत्रकारिता और पाठकों को निश्चित तौर पर फायदा होगा। इस मंथन से निकले विष और अमृत के अतिरक्त कई अन्य बहुमूल्य चीजें भी भी पूर्व कि भांति निकली है।

अमृत के रूप मे-

* इस वार के कारणपाठकों को कम कीमत पर अख़बार उपलब्ध होंगे।

* इससे जो खबरें दबाई जाती थीं वो अब बाहर आएँगी।

* संपादक का जो महत्व घट गया था, वह पुर्नस्थापित होगा जो कि पत्रकारिता के लिए काफी फायदेमंद है।

* अच्छे पत्रकारों कि तनख्वाह बढेगी।

विष के रूप मे-

* पत्रकारों पर दबाव बढेगा।

* मांग के अनुरूप तैयार न होने वाले पत्रकार इस क्षेत्र से बाहर हो जायेंगे।

* पाठकों मे भ्रम कि स्थिति बनेगी कि कौन से पत्र कि विश्वसनीयता है।

* अच्छे पत्रकारों को पढने के लिए कई पत्र खरीदने पड़ेंगे।

कुल मिलाकर यह लड़ाई औद्योगिक घरानों कि है जो अपनी ताकत बढाने के लिए लड़ रहे हैं और इसमे पत्रकारों का प्रयोग एक सैनिक के रूप मे कर रहे हैं। ज्यादा से ज्यादा यह लड़ाई ६ महीने से साल भर चलेगी. तभी तक पत्रकारों की तनख्वाह शेअर की तरह भागेंगे और साल भर बाद यह धडाम से औंधे मुंह नीचे गिरेंगे. इस युद्ध मे नुकसान छोटे अख़बारों को होगा. औद्योगिक घरानों की लड़ाई मे पहले भी कई अख़बार खत्म हो चुके हैं. इस लड़ाई मे भोपाल के रोशनपुरा चौराहे पर तलवार भी निकल आई थी. इस घटना पर एक महोदय ने सुनाया कि - " जब अख़बार मुकाबिल हो तो तलवार निकलों." जब कि यह वास्तविक शेर यह है कि- खींचो न कमान न तलवार निकालो, जब तोप मुकाबिल हो तो अख़बार निकालो.

कुल मिलकर इस लड़ाई से फायदा ज्यादा है अपेक्षाकृत नुकसान के.

1 टिप्पणी:

PRAVIN ने कहा…

is shirshak ko dekhkar aisa lagataa hai ki media itni nakaaratmak ho gai hai ki bina talwaar se iskaa sir kaate ....pralay hi hone wali hai. kya media men achchhi khabron ki koi gunjaaish nahi hai?

mujhe lagtaa hai abhi bhi gunjaaish hai aur aisi khabren samay -samay par ati rahti hai.yah hallaa is liye hai kyonki isse apekshaa bahut adhik hai.