सोमवार, 2 जून 2008

महा-गुरु-घंटाल जी कहिन............

भाइयों !!!

यह किस्सा तब का है जब मेरे गुरु "महा-गुरु-घंटाल जी" मुझे गुरु-घंटाल बनने का प्रयास कर रहे थे। उस समय महा-गुरु-घंटाल जी ने कहा था कि बेटा वक्त बदलने वाला है। तब मैं छोटा था इसलिए नही समझ पाया कि गुरु जी बातों मे क्या गूढ़ रहस्य छिपा है। किंतु इशारों मे ही समझा दिया था कि अब युद्ध के हथियार के रूप मे नई तकनीकि का प्रयोग होगा और लोग एक-दूसरे पर कीचड उछलने मे शर्मायेंगे अतः एक दूसरे को कीचड मे ही डुबो देंगे। और जगह-जगह मीडिया-वार देखने को मिलेगा। अब इसका प्रमाण देखने को मिल रहा है।

भोपाल तो प्रिंट मीडिया के लिए कुरुक्षेत्र बना हुआ है इससे मैंने आपको परिचित कराया ही था। अभी हाल ही मे मैं एक ब्लॉग पढ़ रहा था तो उसमे एक-दूसरे को स्तर से काफ़ी नीचे गिर कर गलियों के तोहफे दिए जा रहे थे। शर्मनाक बात यह है कि ये लोग पत्रकारिता के पेशे से जुड़े है और इस वर्ग को काफी बुद्धिजीवी, विद्वान तथा सहनशील माना जाता हैं.

वहीं दूसरी ओर एक अन्य ब्लागर ने अपने ब्लाग मे लिखा था की "नाम के लिए साला कुछ भी करेगा, चोरी भी करेगा.."। कारण यह था की एक दूसरे ब्लागर ने पहले वाले के ब्लाग से एक स्टोरी चुराकर एक अखबार मे 'संपादक के नाम पत्र' मे भेज दिया था. हालांकि बाद मे उसने माफ़ी भी मांग ली थी.

हिन्दी-ब्लाग अभी नवजात शिशु के रूप मे है तभी से उसमे ऐसी विकृति देखने को मिल रही है तो किशोर, वयस्क और प्रौढ़ होने पर क्या होगा? यह एक विचारणीय प्रश्न है। इस पर सभी ब्लागरों को शायद विचार करना चाहिए. ब्लाग रचनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम है न कि विध्वन्सात्मकता का. ऐसी चीजों पर रोक लगनी चाहिए.

हो सकता है कि कुछ लोग कहें कि उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है। है भाई बिल्कुल है, मैंने कब कहा नही है लेकिन तब तक, जब तक दूसरे के अधिकारों का हनन न हो.

इन चीजों से एक चीज निकल कर सामने आई है कि महा-गुरु ने सही कहा था।

जय हो महा गुरु जय हो. अब मेरे दिल मे महागुरु के दर्शन की इच्छा प्रबल हो रही है.

मैं चला दर्शन करने............दर्शन के बाद शीघ्र मिलूंगा.

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