गुरुवार, 28 अगस्त 2008

धर्मान्तरण का खतरनाक खेल




उडीसा में स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या के बाद २३ अगस्त से ही हिंसा शुरू हो गई थी। विहिप द्वारा २५ अगस्त को बंद के आह्वान के बाद ईसाइयों के खिलाफ जम कर हिंसा हुई और कई गिरजाघरों को आग भी लगा दी गई। २३ को ही कंधमाल और गजपति जिलों में ११ लोग मारे जा चुके हैं। प्रशासन ने स्तिथि को देखते हुए कर्फ्यू लगा दिया था। इसके बावजूद हिंसा थमने का नाम नही ले रही है। अतः दंगाइयों को देखते ही गोली मरने के आदेश दे दिए गए हैं।


स्वामी लक्ष्मणानन्द सरस्वती विहिप के केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल में महत्वपूर्ण सदस्य थे। कई वर्षों से धर्मान्तरण रोकने की मुहिम में जुटे थे। उनके इन कार्यों को लेकर कई संगठन नाराज थे। इससे पूर्व भी इन पर कई हमले कराये गए थे लेकिन स्वामी जी हर बार बच गए। इस बार भाग्य ने साथ नही दिया और काल के ग्रास बन गए।


स्तिथि इतनी न बिगड़ती अगर इस हत्या पर राजनीति न होती। राजनीति के चलते ही हत्या का दोष माओवादियों पर मढा जाने लगा। जिससे हिंसा को बढावा मिला। अगर उचित ढंग से जांच करायी जाती और जल्द से जल्द अपराधियों को पकड़ने का प्रयास किया जाता तो शायद स्थिति इतनी न बिगड़ती।


१९७१ की जनगणना में उडीसा में मात्र ६% ही इसाई थे और २००१ की जनगणना में ये बढकर २७% हो गए। यहाँ की तीन-चौथाई जनसंख्या आज भी गरीबी रेखा से नीचे है। इसी का फायदा उठा कर कई मिशनरियां धर्मान्तरण के कार्यों में जोर शोर से संलग्न हैं। इसकी गवाही यह जनगणना के आंकड़े देते हैं। उडीसा में आज से ४१ वर्ष पूर्व १९६७ में धार्मिक स्वतंत्रता क़ानून बनाया गया था। जो अभी लागू नही है। जबकि यहाँ पिछले १० वर्षों से नवीन पटनायक के नेतृत्व बीजू जनता दल और भाजपा की सरकार है। उडीसा विधानसभा की १४७ सीटों में से ६३ सीटों के साथ बीजू जनता दल सबसे बड़ी पार्टी के रूप में शासन में है और ३३ सीटों के साथ भाजपा सहयोगी है। साथ में ८ निर्दलीय सरकार को समर्थन दे रहे हैं।


भाजपा का एक प्रतिनधिमंडल मुख्यमंत्री से मिला है और अपनी मांग में हत्यारों को जल्द से जल्द गिरफ्तार करने, धार्मिक स्वतंत्रता क़ानून लागू करने और गौहत्या क़ानून दृढ़ता से लागू करने की मांग की है। वहीँ उडीसा उच्च न्यायलय ने राज्य सरकार से हिंसा के बाद प्रभावित क्षेत्र की स्तिथि पर रिपोर्ट कल तक दायर करने को कहा है।


यहाँ पर ईसाई संगठनों और हिन्दू संगठनों के बीच धर्मांतरणों को लेकर विवाद और हिंसा कोई नई बात नही है। पिछले वर्ष २५ दिसम्बर को विहिप द्वारा बंद के दौरान कई चर्चों में तोड़-फोड़ की गई थी। जिसके परिणामस्वरुप २७ दिसम्बर को ब्राम्हणीगाँव पर हथियारबंद ईसाइयों ने हमला किया था। जिसमे एक व्यक्ति मारा गया था और ७० घर जला दिए गए थे।


इन स्तिथियों को देखते हुए यही कहा जा सकता है की सरकार ने अतीत से कोई सबक नही लिया जिसके कारण आज यह विकट हालत पैदा हुए हैं। अभी भी समय है कि सरकार समय रहते चेत जाए और विवाद कि प्रमुख जड़ गरीबी और धर्मान्तरण का उचित समाधान ढूंढ कर उसे कडाई से लागू करे।



चित्र साभार:- दा हिन्दू और गूगल










1 टिप्पणी:

Satyajeetprakash ने कहा…

पहले, एक चर्च, फिर अस्पताल, फिर स्कूल, सेवा और शिक्षा के नाम पर गरीब लोगों का धर्म परिवर्तन. यदि दूसरे लोग उस क्षेत्र वही काम करने जाए तो उसकी हत्या. इससे सामाजिक विद्वेष नहीं तो क्या फैलेगा.