मंगलवार, 26 अगस्त 2008

चाय की ठेले पर- कश्मीर समस्या का हल


काम के बोझ से काफी थकान लग जाने के कारण मैंने सोंचा कि चलो चाय पी कर आते हैं। चाय का आर्डर देने के बाद मैं जा कर एक बेंच पर बैठ गया और चाय का इंतजार करने लगा। मेरी बेंच व सामने की एक अन्य बेंच पर बैठे कुछ लोग चाय और सिगरेट के साथ अमरनाथ, श्राइन बोर्ड और कश्मीर समस्या पर गरमागरम बहस कर रहे थे। मुझे नही मालूम था कि उनकी क्वालीफिकेशन क्या है, लेकिन बहस काफी मजेदार लग रही थी।

घाटीवासियों की पाकिस्तानपरस्ती से वे लोग काफी नाखुश लग रहे थे। १५ अगस्त एवं उससे पूर्व व बाद की घटनाओं में जम्मू की घटना को तर्कपूर्ण ढंग से जायज मान रहे थे। आजादी से लेकर अब तक लद्दाख और जम्मू के साथ हो रहे भेद-भाव को इसका कारण मान रहे थे। वहीं कश्मीर की घटनाओं का कारण सरकार की ग़लत नीतियों, घाटीवासियों को दी जाने वाली सुविधाओं और छूट को मान रहे थे।

मेरी एक चाय ख़त्म हो चुकी थी।

उन लोगों की पूरी बहस सुनने के उद्देश्य से मैंने एक और चाय का आर्डर दिया। साथ ही एक सिगरेट मैंने भी सुलगा ली। कारण यह था कि मैं जानना चाहता था कि देश के ज्वलंत मुद्दों पर आम लोग क्या सोंचते हैं? तब तक उनका एक और साथी आ गया। उन्होंने उसके साथ-साथ अपने लिए भी चाय का आर्डर दिया। उस आगंतुक मित्र ने पूछा कि भाई क्या चर्चा चल रही है? उनमे से एक ने जबाब दिया वही पुराना जे एंड के। फ़िर उसने पूछा कि कोई हल निकला या नही? जबाब आया नही, अभी तो समस्या पर ही चर्चा हो रही है। तो उसने कहा कि ऐसा तो सभी करते हैं। मुद्दों पर बहस करते हैं। लेकिन प्रश्न का उत्तर नही मिलता है। सार्थक बहस तो तभी है जब उसका हल निकले। सभी ने कहा तुम्ही हल निकालों। उसने कहा कि पहले समस्या बताओ फ़िर हल खोजेंगे। एक ने बताया कि इस समय जे एंड के में चारों ओर आग जल रही है। इस आग में पेट्रोल का काम कश्मीर कि राष्ट्रविद्रोही गतिविधियाँ कर रही हैं। इस मामले में सरकार पंगुता कि स्तिथि में पहुँच गई है। क्या कश्मीर कि इन राष्ट्रविरोधी गतिविधियों को काबू में करने का कोई उपाय है?

उसने कहा उपाय तो है लेकिन इसके जरूरी है दृढ़-इच्छाशक्ति ओर स्वहित को छोड़कर राष्ट्रहित देखना। सभी ने बात तो सही है लेकिन हल क्या है? उसने कहा कि पहले एक सिगरेट मंगाओ फ़िर बताता हूँ। अब मेरी उत्कंठा और बढ़ गई थी कि आख़िर हल क्या है? एक ने सभी के लिए सिगरेट का आर्डर दिया। मैंने भी अपने लिए एक सिगरेट का आर्डर दिया। सभी ने सिगरेट जलने के बाद कहा अब हल तो बताओ।

उसने कहा कि इसके हल के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कश्मीर में सुप्रीम पॉवर में होना। मान लो कि मैं राष्ट्रपति हूँ तो

सबसे पहला काम यह होगा कि- जहाँ-जहाँ अलगाववादी ओर राष्ट्रद्रोही फैले हैं, ज्यादातर घाटी में अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लेकर जम्मू तक पूरे क्षेत्र को मिलिट्री द्वारा घिरवा लूँगा।

दूसरा कदम- वहां पर मीडिया ओर मानवाधिकार को प्रतिबंधित कर दूँगा।

फ़िर तीसरा कदम यह होगा कि- राष्ट्रद्रोहियों ओर अलगाववादियों को चिन्हित करके उन्हें कैद कर लूँगा या फ़िर समूल नष्ट कर दूँगा।

इसके बाद भी कश्मीर को मिलिट्री के अन्दर में कम से कम साल भर रखूँगा। तब तक धारा-३७० समाप्त कर जम्मू और लद्दाख में शरणार्थियों को बसा दूँगा। फ़िर कश्मीर से मिलिट्री हटा कर बार्डर पर लगा दूँगा ओर घाटी में भी शरणार्थियों को बसा दूँगा। सभी ने सुझाये गए हल की सराहना की।

किंतु मैं अपनी जिज्ञासा को रोक नही पाया और पूछ ही बैठा कि तुम्हारे इन क़दमों पर अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां व अन्य राष्ट्र हल्ला नही मचाएंगे? तो उसने जबाब दिया कि वे सिर्फ़ हल्ला ही मचाएंगे। क्योंकि यह मेरे राष्ट्र का अंदरूनी मामला है और इसमे कोई भी हस्तक्षेप हमारी संप्रभुता और अखंडता पर हमला माना जाएगा। हमले का जबाब भी हमले के रूप में दिया जाएगा। और इस नाभकीय युग में कोई भी नाभिकीय अस्त्रों से लैस राष्ट्र से लड़ना नही चाहेगा। इसी फार्मूले को अपना कर चीन ने तिब्बत पर कब्जा कर लिया और किसी के बोलने पर उसे धमका देता है। अभी रूस ने भी अशेतिया पर यही तो किया है। लेकिन एक बार फ़िर से कहूँगा कि सबसे ज्यादा जरूरी है दृढ़-इच्छाशक्ति का होना। सभी ने कहा कि अगले राष्ट्रपति तुम बन जाओ। मैंने कहा- आमीन। यहीं पर सिगरेट के साथ-साथ बहस भी समाप्त हो गई। सभी अपने-अपने गंतव्य की ओर चल दिए।

मैं चलते-चलते यह सोंच रहा था कि जिस समस्या का हल इतने दिनों से बड़े-बड़े मीटिंगों और वीआईपी कमरों की बैठकों में नही खोजा जा सका। उसका हल मिला एक चाय के ठेले पर। काश वह व्यक्ति राष्ट्रपति हो जाता ओर कश्मीर समस्या सुलझ जाती। लेकिन यह काश, काश रह जाता है......!!!!!!!!...........

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

वैसे मुझे आपके ब्लॉग पर जम्मू कश्मीर समस्या का ना आसान समाधान निकालने के सुझाये गए उपाय ने प्रभावित किया,किंतु मै आपसे यह जानना चाहती हूँ की सब कुछ इतना आसान है क्या ?

shodarthi ने कहा…

आपका संस्मरण बहुत अछा रहा मै आपकेइस विषय की जिज्ञासा के कारन वहा रुकने पर आप वहा रुके या फ़िर बार बार सिगरेट पीने की इछा से रुके यह तो मै नही जनता लेकिन आपके वहा रुकने की दाद देता हु. आप जैसे लोग यदि समाज मै उठाने वाली बहस को मिडिया के माद्यम से आम लोगो तक दिखायी देती है तो यह काफी कबीले तारीफ बात होगी. फ़िर भी आपके धर्य की और रास्ट्र प्रेम की भावना की मै इजत करता हु.